ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 | 31 |
خسته از عشقم ، ساقی مستم کن
شعله ور هستم ، گاهی پستم کن
دل پر از آتش ، جان چه سوزان است
شعله ی این آتش از هجران است
ساقی امشب می ، بال و پر دارد ؟
مرغ تو ساقی ، دست و سر دارد ؟
خالی از غم دل ، را کن ای ساقی
ای تو مرهم دل ، دل که شد یاغی
محمد خوش بین