ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | ||
6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 |
20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 |
27 | 28 | 29 | 30 |
دوش درحلقهی چشمم رُخ زیبای تو بود
دردل شب سخن ازدیدهی شهلای تو بود
دلم از دوری تو کاسهی خون بود ولی
بازهم شاد وخرامان به ره کوی تو بود
من بیچاره کمگشته سراسیمه چو باد
می وزیدم به رهت ، چون سرابی چو تو بود
من گشتم پی ابروی کمانت شب و روز
هم به دست دلم طّرهی گیسوی توبود
اکرمنوری پرنیان