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می دَوَد سرخ ترین خون به رگِ پایِ جنون
می کِشد باز مرا خسته به صحرایِ جنون
سَرِ سودازده در شهر نگیرد آرامآرش
نتوان بست به زنجیر دگر پایِ جنون
جان سراپا شده هنگامه ی اقیانوسی
در من اینک متلاطم همه دریایِ جنون
شَبَحی می گذرد از دلِ طوفانیِ دشت
در شبی تیره و تاریک به فردایِ جنون
کارِ دل یکسره از عقلِ تهی بیرون است
وسعتی می طلبد بادیه پیمایِ جنون
بانگ و فریادِ مرا کی شنود گوشِ فلک
پاره شد سرخ ترین حنجره در نایِ جنون
آرش آزرم