| ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
| 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | ||
| 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
| 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 |
| 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 |
| 27 | 28 | 29 | 30 |
تو ای صفای چهرهات،
ز تاب شعله، آتشین!
رُخَت ز رقص شعلهها،
گُل آفرین، گُل آفرین.
ربوده هوش ما ز سر
به نغمههای دلنشین،
به آسمان نگاه کن!
میانِ این جرقهها
تبسمی به ماه کن!
به آن ستاره هم بگو:
- تو نیز اگر جرقهای ز آتشی،
در آتش کدام یار نازنین
چو من زبانه میکشی...؟
فریدون مشیری