| ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
| 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | ||
| 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
| 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 |
| 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 |
| 27 | 28 | 29 | 30 |
ای شمع چه مغرورانه در آخرین لحظه ی پایانیت سکوت وار هوار می کشی...
شاید دستی تو را به شمعی دگر واگذارد..
و اینچنین عاشقانه، نسلی دگر به هجران یار بسوزد..
ای شمع آدمی نیز چون تو می سوزد در فراق یار و خاموش می شود در دل خاک، چه آسان و چه سخت...
چونانکه دور می شود از ذهن و پاک می شود از دهر..
سمیه قراخانی بهار