| ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
| 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | ||
| 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
| 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 |
| 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 |
| 27 | 28 | 29 | 30 |
تکه کاغذهای منقضی اَم را
میان رقص زُلف پریشانت در باد رها کردم
شاید واژه های بی دهان
حرفی بزنند از قدمِ بلور ماه
که هر شب تشنه ی نوازش دستان
ستاره ها بوده اند،
هر چند سکوت دلگیرشان
به گوش هیچ آسمانی نرسید؛
مبادا بوی بغض ترکیده ی بهار
در شعر گلوهایشان جا مانده باشد!
مرتضی سنجری