| ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
| 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | ||
| 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
| 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 |
| 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 |
| 27 | 28 | 29 | 30 |
دم کرده ام قهوه ی تلخی برایت
به طعم روزهای جدایی و فراغت
هر که را دیدم گرفتم سراغت
در این عالم هر چه دیدم جز صداقت
می گردم کل دنیا را برایت
تا کنم جان بی ارزش فدایت
فدایت می شوم تا بماند این حکایت
در این عالم تهی از عشق و حکایت
امیر مردانی