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می گرفتم
هر برگ حافظ
را
به قصد فال
منتها
گفتش
رهایت کند
انگار
تو را از خیال
ورق زدم
طالعی دیگر
بهر آسوده حال
تا بیاید شاید
نامش
نیک
همراه اقبال
پوران گشولی