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کـســی بیـایــد و مــا را بــه انـتـهــــا ببـــرد
بـه سمــت مـشــرقِ روی مَـــهِ خــــدا ببـــرد
اگــر نشــــد همــه ی عـشــق را بــه یکبـــاره
دل مــــرا بـشــکــافــد جـــدا جـــدا بـبــــرد
غــریــق مــانــده دلــم در هـــوای تنـهـــایـی
بگــو بــه قــافـلــه ســــالار مــا ، بَـــلا ببـــرد
مسیـر قـافلــه سخـت اسـت و او بـرای خـدا
دلـــــم ز زنـــگ درآورده ، بـــا جـَـــلا بـبــــرد
شـود به گوشـه ی چشمــی تمــامِ جــان مــرا
ز کِـبـر و کینـه بشوید و (مـن) و (مـا) ببـرد ؟
چه بُغـض ها که خـزیده اسـت در حـصــار دلم
شــود کــه عشــق بیـایـد و سـایــه هـا ببــرد ؟
چـه نالــه ها که نکـرده است قـلــب خستـه من
بـه شـــوق عـاشقــی ام قـلـبِ بـیـنــوا بـبـــرد
مـبـــاد زنـدگـــی ام ، گــر بجـــای تـعـظـیـــم ت
جـنـــون عـاشـقـــی ام ، جـامــه ی حـیـا بـبــرد
خـــدا کـنـــد کــه بـیـایـد فـــراق مـا را کُـشــت
مــرا بــه انـتـهــای دل انـگیــز جـــاده هــا ببــرد
جمال الدین بخشنده