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این روزها
دیگر تنم
توان حمل تنم
را ندارد
گاهی به
روحم
طعنه میزند
که تو
با من چرایی
و
تن خسته
دلش
یک سیر
عشق میخواهد
و
من منتظر
یک لبخند
و وقتی
بجای لبخند یک کودک
یک مادر
یک معشوق
یک معیوب
یک مفت خور
میخندد
من دلم
میگیرد
و باز
تنم خسته
و تجمل حمل
سنگین
ای کاش
بجای
دعا
برای صبح
برای چشمانت
می رقصیدن
و
باز
می رقصیم
سیاوش دریابار