| ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
| 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | ||
| 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
| 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 |
| 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 |
| 27 | 28 | 29 | 30 |
هیچ وقت اشک های من پنهان نمی ماند
و یک روز آشکارا خسته از جان
با تب تند وجودم
پرچین های ذهن را خانه تکانی می کنم
می نشینم لب دریای وجود
زانوانم خسته اند
آغوش می خواهد و من در بغل جا می دهم
سنگ بی احساس را در پهنه ی مرز تنم
یک زوال یک اتصال ،
با هلال نازک ماه
عشق را در کشور دل سَر به راهش می کنم
سپیده رسا