ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | ||||
4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 |
11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 |
18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 |
25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 |
ناز -با لحن زیر و بم- داری
باز گفتی که دوستم داری
از سر سادگی ندانستم
سر جور و سر ستم داری
تو هم آری دل مرا بشکن
مگر از دیگران چه کم داری
تو بیا و سر از تنم بردار
بیش از این حق به گردنم داری!
من سراسیمه می شوم تو بخند
تا تو داری مرا، چه غم داری؟
راستی چیز حیرت انگیزی است
این دل آدمی... تو هم داری؟!
شعر از: محمدمهدی سیار