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برگِ خزان ز شاخه فرو ریخت، یادِ تو
آهی ز دل برآمد و بگریخت، یادِ تو
هر برگ چون گلیست که بر خاک میافتد
با رنگِ زرد و سرخ برآمیخت، یادِ تو
چون بوی مهر در نفسِ بادِ سردِ صبح
در جانِ من ز هر طرف آویخت، یادِ تو
گفتم که: «پایِ بوسه و آغوش، دور شد»
یکباره اشک آمد و آمیخت، یادِ تو
ای کاش در خزانِ دلانگیزِ این غروب
آغوشِ تو مرا بپذیرد، یادِ تو
مرتضی فرهمندعارف