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ی روزی قصه ی خودتموم کنم
میشه مثل یک کتاب
توی بازاردست به دست میگردونن
وتوهم حرفای ناگفته درونش میخونی
که چه درداکشیدم بخاطردوستت دارم
مینویسم که مریض توبودم
توطبیب ماهری بودی ولی ، منوبازی میدادی
حتی دردمن نکردی مرهمی
اماتعجب ندارد اینهمه اندوه وستم
که زدست توتحمل کردم
همه نیرنگ ودروغ
فهمیدم من که غرورتو همه پوشالی بود
عاقبت آه دلم دامنتو میپوشونه
توگرفتارغم ودردمیشی
که درمون نداره
وفراموشت نشه، که طبیب تو منم
کریم لقمانی