ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | ||||
4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 |
11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 |
18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 |
25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 |
تیری که رها کردی از کمان
دیگر متوقف نمی شود.
همان مسیری را طی خواهد کرد
که چشمانت هدایتش کرد.
خواه قلبِ من ,
یا سیبِ سبزی به روی سرم...
علی رضا عزتی